संध्या शर्माका नमस्कार.........हद हैमान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है, लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है, हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों, सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है, स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का, आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है, कौन अपना है पराया हमे क्या मालुम, प्रेम का रस जान लेवा इक शहद है .. हद है, भूल मुझको जो गई यादों के हर लम्हों से, जिंदगी उसके की ख्यालों की सुखद है .. हद है. आइये अब चलते हैं आज की वार्ता पर ...
बोल पाकिस्तान तेरे साथ क्या सलूक किया जाए : कविता की हालिया संदर्भ में पुर्नप्रस्तुति (अविनाश वाचस्पति) - कारगिल युद्ध के समय जुलाई 1999 यानी लगभग 10 वर्ष पूर्व यह कविता लिखी गई थी और समाचार पत्रों में छाई रही थी। उस समय ब्लॉग का जमाना भी नहीं था। पाकिस्तान ... मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई - मौत की नमाज़ पढ रहा है कोई कीकर के बीज बो रहा है कोई ये तो वक्त की गर्दिशें हैं बाकी वरना सु्कूँ की नीद कब सो रहा है कोई आईनों को फ़ाँसी दे रहा है कोई सब्ज़बाग... बंधुआ मजदूर नहीं है देश की सेना ! - दिल्ली में देश की बेटी के साथ गैंगरेप की घटना ने लोगों को हिला कर रख दिया है। सच कहूं तो दिल्ली अभी भी इस घटना से उबर नहीं पाई है। भारी ठंड और 2 डिग्री के ...
उठो जागो - जो टूट चुका है समझौता, तुम उसकी लाश क्यों ढोते हो? धोखा तुम्हारे साथ हुआ है क्यों शराफत का लबादा ओढ़े रहते हो? बन्दूक,गोली, बम, हथगोले देकर चलाने की इजा... शहीदों के प्रति बैरुखी क्यों दिखाती हैं सरकारें !! - हमारी सरकारें सैनिकों और शहीदों को क्यों नहीं गंभीरता से लेती है क्या इसलिए कि शहीद और सैनिक वोटबैंक नहीं है ! सरकारें संजीदा हो या नहीं हो लेकिन सरकार के...शहीद के मन की - कैसे तुझे बताऊँ माँ हूँ मैं कितना खुश किस्मत जब तक जिया कर्तव्य से पीछे न हटा सर्दी से कम्पित न हुआ गर्मी से मुंह ना मोड़ा अंत तक हार नहीं मानी की सर...
शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े - * * * * *शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े * *करके मेरी पुकार अनसुनी * *बैठ जाते है अलाव तापने * *कभी दुबके रजाई में * *मोज़े मफलर शॉल लपेटे * *खदबदाती राबड़ी ... एक बेहूदा, मूर्खतापूर्ण आलेख! - आज बात करते हैं एक बेहूदा, मूर्खतापूर्ण आलेख की। पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.... ब्लॉग और ब्लॉगर की टिप्पणी ....बापूजी जो भाव से बलात्कारी हो उसे तो सगी बहन भी भाई कहने में झिझकेगी -
ओवैसी प्रश्न तो बहुत है , सामने होता तो जरुर पूंछता : - 'ओवैसी’ के पागलपन को आखिर हिंदुस्तान किस तरह स्वीकारे ? वह व्यक्ति जिसे जनता के बहुमत से सरकार का हिस्सा बनाया गया है उसके वक्तव्यों को १२५ करोड़ की जनता ...जन-जन का सहयोग चाहिए... - *जन-जन का सहयोग चाहिए* राजनीति हो चुकी बहुत, अब इसका हमें उपयोग चाहिये बलात्कार मिटाने में अब, जन - जन का सहयोग चाहिये, आज देश में बलात्कारी , जगह -...सड़कों पर आन्दोलन सही पर देहरी के भीतर भी झांकें - दिल्ली में हुए वीभत्स हादसे ने पूरे देश को हिला दिया । इसके बारे में अब तक बहुत कुछ कहा और लिखा गया है । अनशन ,धरने और कैंडल मार्च सब हुआ और हो रहा है । ...
शरभराज का शरभपुर …………… - बार-नवापारा के जंगल में कांसा पठार एवं रमिहा पठार के बीच में हटवारा पठार स्थित है। इस पठार को सिंघा धुरवा कहा जाता है। मान्यता है कि जंगल में स्थित पठार प..पुलिस अंकल ... - *सख्त क़ानून ...* सख्त क़ानून से उन्हें परहेज नहीं है 'उदय' डर तो इस बात का है कि - कहीं कल खुद उनकी बारी न आ जाये फांसी पे चढ़ जाने की ? ....रावण सा भाई ... - इन दिनों दिल्ली रेप कांड के बाद पूरे देश में महिलाओं पर अत्याचार को लेकर वैचारिक क्रंाति चल रही है । महिला अत्याचार के खिलाफ चल रहे इस जंग से हर कोई अपने को ...
ओ दुनिया के रखवाले ....सुन!!!.. - जैसे ही ठंड का मौसम आया लगा खाने -खिलाने का मौसम आया गाजर का हलवा और पोहा-जलेबी तो खूब खाई और मेथी का पराठा भी भाया पर मूली कभी न भाई ! काकी की कचोरी की ... एक जश्न ऐसा भी .. - *आज मैंने देखा सड़क पर * *एक नन्हा सांवला बच्चा * *प्यारा सा,, खाने की थाली में कुछ ढूंढ़ता हुआ* *उस थाली में था भी तो ढ़ेर सारा पकवान .....* *वहीँ पास ...रोक सकोगे???... मेरे भीतर आक्रोश की उफनती लहराती फुंफकारती धधकती विकराल नदी है रोक सकोगे??? सुना है तुम... समंदर हो ...
वक्त की टूटी घड़ी दीवार पर अब भी धड़कती है - *"वक्त की टूटी घड़ी दीवार पर अब भी धड़कती है , और रिश्ते मर गए हैं सच के सदमें से बोझिल सी रातों में सर्द से हालात सा मेरा वजूद छल चुके अहसास को ओढ़े है इक बस शर्म ही शर्म...और कोई न कर्म - मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के भ्रष्टाचार -- शर्म, शर्म, शर्म . घोटालों की राशि का लगातार बढ़ते जाना -- शर्म, शर्म, शर्म . महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में ...अब गैस कनेक्शन भी पोर्टेबल - देश में तेज़ी से बदल रही उपभोक्ता आधारित सेवाओं में सरकारी क्षेत्रों की कम्पनियों की साख़ को फिर से लौटाने के लिए जिस तरह से कई प्रयास...
